भगवान कृष्‍ण के मित्र होते हुए भी क्‍यों थे सुदामा इतने गरीब…( Krishna Sudama story. )

देवताओं के ऋषि को सांदीपनि कहा जाता है। वे भगवान कृष्ण, बलराम और सुदामा के गुरु थे। गुरु ने श्रीकृष्ण से दक्षिणा के रूप में अपने पुत्र को मांगा, जो शंखासुर राक्षस के कब्जे में था।
       सुदामा जी भगवन श्री कृष्ण के परम मित्र तथा भक्त थे। वे समस्त वेद-पुराणों के ज्ञाता और विद्वान् ब्राह्मण थे। श्री कृष्ण से उनकी मित्रता ऋषि संदीपनी के गुरुकुल में हुई। सुदामा जी अपने ग्राम के बच्चों को शिक्षा प्रदान करते थे और अपना जीवन यापन ब्राह्मण रीति के अनुसार वृत्ति मांग कर करते थे। 
  उज्जैन (अवंतिका) में स्थित ऋषि सांदीपनि के आश्रम में बचपन में भगवान श्रीकृष्ण और बलराम पढ़ते थे। वहां उनके कई मित्रों में से एक सुदामा भी थे। सुदामा के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है। कहते हैं कि सुदामा जी शिक्षा और दीक्षा के बाद अपने ग्राम अस्मावतीपुर (वर्तमान पोरबन्दर) में भिक्षा मांगकर अपना जीवनयापन करते थेl
        Sudama was a Brahmin childhood friend of Hindu deity Krishna from Mathura, the story of whose visit to Dwaraka to meet Krishna is mentioned in the Bhagavata Purana.[1] He was born as a poor man in order to enjoy the transcendental pastimes.(story as written below in Hindi)

As per other sources: We have all heard the Krishna Sudama story. But not many of us know that Sudama was from Porbandar. In the story, he traveled from Sudamapuri to Beyt Dwarka. Sudama and Krishna had studied together at the Sandipani Ashram in Ujjayini.[2]

भगवान कृष्‍ण के मित्र होते हुए भी क्‍यों थे सुदामा इतने गरीब…

दरअसल सुदामा जी के गरीब होने की पीछे वजह श्रीकृष्‍ण के प्रति उनकी परम मित्रता ही थी। जानिए कैसे…

भूख ये व्‍याकुल ब्राह्मणी को जब पता लगा कि चोर उसके चने चुराकर ले गए हैं तो उसने शाप दिया कि जो भी उन चनों को खाएगा वह दरिद्र हो जाएगा।
     चने..उन्‍होंने कृष्‍ण को खिला दिए तो सारी सृष्टि गरीब हो जाएगी। उन्‍होंने सोचा, मैं कदापि ऐसा नहीं कर सकता। मेरे रहते मेरे भगवान दरिद्र हो जाएं, ऐसा नहीं हो सकता। इसलिए उन्‍होंने बिना कृष्‍ण को दिए सारे चने खुद खा लिए। मगर भगवान कृष्‍ण भी समझ गए थे कि सुदामा ने ऐसा क्‍यों किया। 
फिर कई वर्षों के बाद सुदामा जब कृष्‍ण के द्वार पर आए तो उन्‍होंने अपने इस परम मित्र को गले से लगाकर उनकी सारी दरिद्रता दूर कर दी।

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